(((( मंजिल सामने है ! ))))


एक बार एक सन्यासी संत के आश्रम में एक व्यक्ति आया. वह देखने में बहुत दुखी लग रहा था.
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आते ही वह स्वामी जी के चरणों में गिर पड़ा और बोला -“महाराज मैं अपने जीवन से बहुत दुखी हूँ.
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मैं अपने दैनिक जीवन में बहुत मेहनत करता हूँ, काफी लगन से काम करता हूँ, लेकिन फिर भी कभी सफल नहीं हो पाया.
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मेरे सभी रिश्तेदार मुझ पर हँसते हैं. भगवान ने मुझे ऐसा नसीब क्यों दिया है कि मैं पढ़ा-लिखा और मेहनती होते हुए भी कभी कामयाब नहीं हो पाया ?”
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स्वामी जी के पास एक छोटा सा पालतू कुत्ता था. उन्होंने उस व्यक्ति से कहा, “तुम पहले वो सामने दिख रही इमारत तक ज़रा मेरे कुत्ते को सैर करा लाओ, फिर मैं तुम्हारे सवाल का जवाब दूँगा.”
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आदमी को यह बात अच्छी तो नहीं लगी परन्तु फिर भी वह कुत्ते को लेकर सैर कराने निकल पड़ा.
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जब वह लौटकर आया तो स्वामी जी ने देखा कि आदमी बुरी तरह हाँफ रहा था और थका हुआ सा लग रहा था.
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स्वामी जी ने पूछा – “अरे भाई, तुम ज़रा सी दूर में ही इतना ज्यादा कैसे थक गए ?”
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आदमी बोला – “मैं तो सीधा सादा अपने रास्ते पर चल रहा था परन्तु ये कुत्ता रास्ते में मिलने वाले हर कुत्ते पर भौंक रहा था और उनके पीछे दौड़ रहा था. इसको पकड़ने के चक्कर में मुझे भी दौड़ना पड़ता था इसलिए ज्यादा थक गया…”
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स्वामी जी बोले – “यही तुम्हारे प्रश्नों का भी जवाब है. तुम्हारी मंज़िल तो उस इमारत की तरह सामने ही होती है लेकिन तुम मंज़िल की ओर सीधे जाने की बजाय दूसरे लोगों के पीछे भागते रहते हो और इसीलिए मंज़िल तुमसे दूर ही बनी रहती है.
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यदि तुम अपने पड़ोसी और रिश्तेदारों की बातों पर ध्यान न देकर केवल अपनी मंज़िल पर नज़र रखोगे तो कोई कारण नहीं कि वह तुम्हें न मिले.”
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आदमी की समझ में बात आ गई थी. उसने स्वामी जी को प्रणाम किया !
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